*कर्मचारियों के वेतन समझौते को लेकर श्री पी.के.सिंह राठौर के द्वारा लिखे गए पत्र की एसईसीएल एटक यूनियन के केंद्रीय महामंत्री, जेबीसीसीआई के वैकल्पिक सदस्य कामरेड हरिद्वार सिंह ने की घोर निन्दा, जताई आपत्ति*
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संतोष चौरसिया
अनूपपुर ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ कोल एग्जीक्यूटिव के प्रमुख महासचिव श्री पी.के.सिंह राठौर के द्वारा कोयला कर्मचारियों के होने वाले 11 वें वेतन समझौता के संबंध में प्रश्न चिन्ह लगाते हुए सम्माननीय सचिव, डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेज को पत्र लिखकर कोयला कर्मचारियों के बेसिक का कोयला अधिकारियों के बेसिक से तुलना कर आपत्ति दर्ज की है, जिसमें उन्होंने कोयला कर्मचारियों का वेतन समझौता 10 वर्षों का किए जाने या कोयला कर्मचारियों का बेसिक कोयला अधिकारियों से अधिक ना हो पाने के संबंध में अपनी ओछी मानसिकता प्रकट की है, वह भी ऐसे में जब कोयला कर्मचारियों का 11वां वेतन समझौता हेतु सरकार द्वारा पत्र लिखकर कोल इंडिया प्रबंधन को जल्द ही जेबीसीसीआई समिति के गठन की कार्यवाही करने हेतु कहा गया है।
श्री पी.के.सिंह राठौर के द्वारा लिखे गए पत्र पर एसईसीएल एटक यूनियन के केंद्रीय महामंत्री, जेबीसीसीआई के वैकल्पिक सदस्य कामरेड हरिद्वार सिंह ने घोर निंदा व्यक्त की है। कामरेड हरिद्वार सिंह ने कहा कि इसके पूर्व ट्रेड यूनियनों द्वारा घोषित 2, 3 व 4 जुलाई 2020 की हड़ताल का श्री पी.के.सिंह राठौर ने अपने संगठन के तरफ से पूर्ण समर्थन दिया था, जो की सराहनीय था। आज कर्मचारियों के वेतन समझौते को लेकर इस तरह का पत्र लिखना उन्हें शोभा नहीं देता है। गैर अधिकारी वर्ग में कर्मचारी को A1 ग्रेड तक पहुंचने में लगभग 15 से 20 वर्ष का समय लग जाता है दूसरी तरफ अधिकारी वर्ग में आज सीधे E2 ग्रेड में नियुक्ति हो रही है ऐसे में 20, 25 वर्षों तक कंपनी में कार्य किए एक उच्च ग्रेड के कर्मचारी के बेसिक की तुलना आज ज्वॉइन किए एक अधिकारी के बेसिक से तुलना करना कतई उचित नहीं है। कर्मचारी वर्ग का न्यूनतम बेसिक 1011.27 रुपए प्रतिदिन अथवा 26,293 रुपए प्रति माह है। वहीं दूसरी तरफ अधिकारी वर्ग के E1 ग्रेड का न्यूनतम बेसिक 40,000 हजार रुपए है इसके अलावा अधिकारियों को कंपनी के द्वारा अन्य कई सुविधाएं मिलती हैं। अधिकारियों का पे रिवीजन कर्मचारियों या ट्रेड यूनियन के सहमति से नहीं होता है सरकार स्वतः ही पे रिवीजन करता है। कोयला कर्मचारियों का वेतन समझौता कोल इंडिया के उच्च प्रबंधन व ट्रेड यूनियन के आपसी सहमति से होता है जिस पर केंद्र सरकार की भी सहमति रहती है। कर्मचारियों के वेतन समझौते का जिक्र करने से बेहतर होता कि श्री पी.के.सिंह राठौर अपनी मांगों को कोल इंडिया प्रबंधन अथवा कोयला मंत्रालय भारत सरकार के समक्ष रखते। इस तरह का पत्र लिखकर उन्होंने कर्मचारियों व अधिकारियों के बीच गहरी खाई खोदने का प्रयास किया है जो कि कहीं से उचित नहीं है। वर्तमान समय में जिस तरह से कोयला कर्मचारी बिना किसी अतिरिक्त लाभ के इस कोरोना काल में अपनी जान जोखिम में डालकर सतत कार्य कर रहे हैं, कोयले का उत्पादन कर रहे हैं उनके वेतन समझौते पर आपत्ति किया जाना अनुचित है। एटक ट्रेड यूनियन इसकी घोर निन्दा करता है।
वर्तमान में केंद्र सरकार की जो नीति कोल इंडिया व अन्य पब्लिक सेक्टर को लेकर है, वह किसी से छुपी नहीं है जैसे कामर्शियल माइनिंग, कोल इंडिया का शेयर बिक्री, सीएमपीडीआई को कोल इंडिया से अलग करना, कोल इंडिया का विखंडन, सीएमपीएफ का ईपीएफ में विलय, 30 वर्ष की सेवा या 50 वर्ष की उम्र के बाद जबरन सेवानिवृत्ति करने का फैसला आदि। कोल इंडिया को बचाने के लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि सभी ट्रेड यूनियन व अन्य एसोसिएशन मिलकर केंद्र सरकार की मजदूर व उद्योग विरोधी नीतियों का सामना करें, आपसी सामंजस्य बनाए रखें और तमाम मतभेदो से दूर रहें।
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